01 June, 2021 |
सूरदास का जीवन परिचय : सूरदास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के महान कवि थे । इन्हें परम श्रीकृष्ण भक्त भी माना जाता है इन्होंने श्रीकृष्ण की लीलाओं का बहुत ही अच्छा वर्णन किया है । इनका जन्म 1478 ईस्वी में हुआ लेकिन इनके जन्म स्थल को लेकर विद्वानों में विभिन्न मत है कुछ विद्वान इनका जन्म स्थल दिल्ली तथा फरीदाबाद के बीच सीधी में मानते हैं और कुछ विद्वान आगरा के समीप रुनकता या रेणुका में मानते हैं। इन्हें ब्राह्मण जाति के माना जाता है सूरदास जी बचपन से ही विलक्षण बुद्धि के बालक थे । बचपन में ही इन्हें गायन में बहुत रुचि थी सूरदास जन्म से ही अंधे थे या बाद में अंधे हुए इस पर भी मतभेद है कुछ विद्वानों का मानना है कि सूरदास की रचनाओं को पढ़कर ज्ञात होता है कि किस प्रकार उन्होंने कुदरत के नजारों को अपनी रचनाओं में लिखा है वह कोई आंख वाला व्यक्ति ही कर सकता है।
संसार से मोहभंग : किशोरावस्था आते-आते इनका संसार से मोहभंग हो गया और सब कुछ त्याग कर घर से निकल पड़े और मथुरा के विश्राम घाट में रहने लगे यहां कुछ दिन रहने के बाद मथुरा वृंदावन यमुना के किनारे गांव में रहने लगे वहां उनकी स्वामी वल्लभाचार्य से मुलाकात हुई सूरदास ने वल्लभाचार्य को अपना गुरु बना दिया इससे पहले वह भगवान श्री कृष्ण से संबंधित भक्ति भाव के पद का गायन करते थे। अपने गुरु की प्रेरणा से उन्होंने संख्याएं वात्सल्य माधुर्य भाव के पदों की भी रचना की सूरदास को श्रीनाथ मंदिर में भी भजन कीर्तन के लिए नियुक्त किया गया श्रीनाथ मंदिर के नजदीक ही परसोली नामक गांव में सन 1583 में यह भक्ति में लीन हो गए। सूरदास की रचनाएं सूरदास जी के पांच लिखित ग्रंथ पाए जाते हैं सूरसागर । सूरसागर की प्रसिद्ध रचनाएं सवा लाख पद पर अब 8000 पद ही मिलते हैं
भक्ति भावना सूरदास जी भक्ति मार्ग में दक्ष थे उन्होंने श्रीकृष्ण को अपना आराध्य मानकर उनकी लीलाओं का वर्णन अधिकाधिक किया है।
भाषा शैली सूरदास जी की भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है जिसमें उन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग भी किया है।
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