14 November, 2021 |
रावण - रावण का नाम हिंदू धर्म में सभी लोग जानते हैं रावण को कई नामों से जाना जाता है दशानन लंकाधिपति इत्यादि । रावण ब्राह्मण कुल में पैदा हुआ था । इनके पिता का नाम विश्रवा था । वह शिव के परम भक्त थे । रावण बहुत बड़ा विद्वान था । वह चार वेद छह शास्त्रों का ज्ञाता था । आज भी लंका में रावण की पूजा की जाती है। रावण त्रिलोक विजयी था वह पराक्रमी था । उसके भाई से सारे देवता भी कांपते थे अपने अहंकार की वजह से श्रीराम द्वारा इनका अंत हुआ था ।
रावण के गुण - मान्यता अनुसार रावण में अनेक गुण भी थे। परम शिव भक्त ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र और विश्रवा का पुत्र था । रावण महान राजनीतिज्ञ महा पराक्रमी योद्धा एवं अत्यंत बलशाली था । रावण के शासनकाल में लंका का वैभव अपने चरम सीमा पर था इसलिए उसकी लंका नगरी को सोने की लंका अथवा सोने की नगरी भी कहा जाता था । उसे मायावी इसीलिए कहा जाता था कि वह इंद्रजाल तंत्र सम्मोहन और अन्य कई तरह की काली विद्या जानता था । रावण मैं राक्षसत्व था लेकिन उसके गुणों का वर्णन नहीं किया जा सकता ऐसा माना जाता है कि रावण शंकर भगवान का बहुत बड़ा भक्त था वह महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्यामान था वाल्मीकि ने उसके गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकार करते हुए उसे चारों वेदों का विश्व विख्यात ज्ञाता और महान विद्वान बताया हैं ।
रावण का अहंकार : उसके पास ऐसा अभिमान था जो अन्य किसी के पास नहीं था इस कारण सभी इससे भयभीत थे । भगवान रामचंद्र का विरोधी और शत्रु होने के नाते रावण सिर्फ बुरा ही नहीं था वह बुरा बना तो सचमुच में ही प्रभु श्री राम की इच्छा से।
वाल्मीकि रामायण में हनुमान का रावण के दरबार में प्रवेश के समय लिखते हैं कि रावण को देखते ही राम भक्त कहते हैं कि रूप सौंदर्य क्रांति तथा सर्व लक्षण युक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान ना होता तो यह देव लोक का स्वामी बन जाता। रावण जहां दुष्ट और पापी था वहीं उसके शिष्टाचार और उसके आदर्शवादी मर्यादाएं भी थी । राम के वियोग में दुखी सीता से रावण ने कहा था कि यदि तुम मेरे प्रति संभावना नहीं रखती तो मैं तुम्हें स्पर्श नहीं कर सकता शास्त्रों के अनुसार महादेव के श्राप के बाद से ही रावण की गिनती राक्षसों में होने लगी राक्षसों की संगति से रावण का अभिमान और गलत कार्य और भी बढ़ते चले गए । श्राप से पहले वह ब्राह्मण था और सात्विक तरीके से तपस्या करता था ।
रावण ने युद्ध में कई राजाओं को पराजित करते हुए इक्ष्वाकु वंश के राजा अनरण्य के पास जा पहुंचा जो अयोध्या पर राज करते थे रावण ने उन्हें भी द्वंद युद्ध करने अथवा पराजय के लिए ललकारा।दोनों में भीषण युद्ध हुआ पर ब्रह्मा जी के वरदान के कारण रावण उससे पराजित ना हो सका जबरन अनरण्य का शरीर बुरी तरह से क्षत-विक्षत हो गया तो रावण इक्ष्वाकु वंश का अपमान और उपहास करने लगा इससे कुपित होकर अनरण्य ने रावण को शाप दे दिया मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि महात्मा इक्ष्वाकु के इसी वंश में दशरथ नंदन राम का जन्म होगा जो तेरा वध करेगा यह कहकर राजा स्वर्ग सिधार गए।
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