ध्रुव तारे की कहानी

10 February, 2022

राजा उत्तानपाद का विवाह एक अति सुंदर कन्या से हुआ था। वह अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे । उनकी पत्नी का नाम सुनीति था। कई वर्ष बीत गए लेकिन उनके कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई । राजा की पत्नी सुनीति ने राजा से दूसरा विवाह करने के लिए बताया राजा ने पत्नी को बताया कि दूसरा विवाह करने से तुम्हारा स्थान कम हो जाएगा । पत्नी ने बताया मुझे आप पर भरोसा है । आप ऐसा होने नहीं दोगे। राजा को पत्नी की जिद के आगे झुकना पड़ा। जब राजा दूसरी पत्नी को ब्याह कर महल में लाया तो उसे पता चला कि राजा के पहले भी पत्नी है। नई ब्य्हा कर लाई पत्नी का नाम सुरुचि था सुरुचि ने राजा को बताया कि मैं तब तक महल में प्रवेश नहीं करूंगी जब तक राजा की पहली पत्नी महल को छोड़कर दूर नहीं चली जाए। राजा की पहली पत्नी ने यह सुनकर अपने आप ही महल छोड़ दिया और महल से काफी दूर जंगल में कुटिया बनाकर रहने लगी और राजा नई पत्नी के साथ महल में रहने लगा।

जन्म - कुछ वर्षों के बाद राजा जंगल में शिकार खेलने के लिए चला गया । शिकार करते समय राजा गिर गया और घायल हो गया जब इस बात का पता राजा की पहली पत्नी सुनीति को चला जो जंगल में कुटिया बनाकर रह रही थी तो उसने राजा को अपनी कुटिया लाया और जंगली जड़ी बूटियों से राजा का इलाज कराया। कुछ समय तक राजा कुटिया में ही अपनी पहली पत्नी के साथ रहा उसी दौरान सुनीति गर्भवती हो जाती है और उसे पुत्र संतान की प्राप्ति हो जाती है। राजा महल में चला जाता है। राजा को पुत्र रत्न प्राप्ति की बात काफी समय के बाद पता चलती है और उस पुत्र का नाम ध्रुव रखा जाता है। महल में रह रही राजा की दूसरी पत्नी को भी कुछ समय के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाती है उसका नाम उत्तम रखा जाता है इस प्रकार राजा को दोनों पत्नियों से पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाती है। जब जंगल की कुटिया का बालक ध्रुव 5 साल का हो जाता है तो वह अपनी माता सुनती से अपने पिता के विषय में पूछता है तब सुनीति अपने पुत्र ध्रुव को राजा उत्तानपाद के विषय में बताती है कि आपके पिता राजा उत्तानपाद है जो इस राज्य के राजा है और महल में रहते हैं 1 दिन बालक ध्रुव अपनी माता सुनीति से आज्ञा लेकर अपने पिता राजा उत्तानपाद से मिलने महल की ओर निकल जाता है। किसी तरह बालक ध्रुव महल में पहुंचकर अपने पिता राजा उत्तानपाद से मिलता है और अपने पिता के चरण स्पर्श करता है और बताता है कि मैं आपका पुत्र ध्रुव हूं। राजा अपने पुत्र को अपनी गोद में बैठता है और प्यार करता है कुछ देर के बाद राजा की दूसरी पत्नी जो महल में राजा संग रहती है वह राजा के पास आ जाती है बालक ध्रुव को राजा की गोद में बैठा देखकर उसे उसे क्रोध आ जाता है वह बालक ध्रुव को राजा की गोद से धक्का मार देती है और उसे चूड़ी भी स्त्री का पुत्र कहकर अपमानित करती है। बालक ध्रुव के दिल में इस बात की बहुत ठेस पहुंचती है।

तपस्वी ध्रुव - बालक ध्रुव कुटिया में आकर अपनी मां को पूरी बात बताता है मां सुनिधि अपने पुत्र ध्रुव को समझाती है और कहती है यदि तुम्हें कोई बुरे शब्द कहे तो तुम्हें उसे बुरे शब्द मत कहो इससे तुम्हें भी हानि होगी यदि तुम्हें पिता की गोद में बैठना ही है तो भगवान विष्णु की उपासना करो वह जगत पिता है उनकी गोद में बैठो। बालक ध्रुव पर अपनी माता द्वारा बताए गए शब्दों का गहरा प्रभाव पड़ता है और वह यमुना तट पर जाता है वहां पर देव ऋषि नारद उस बालक की मनोदशा जानकर बालक ध्रुव को भगवान विष्णु भक्ति की विधि बताते हैं। ध्रुव कठोर तपस्या में लीन हो जाता है कई महीनों तक खड़े होकर तपस्या करता है । कभी जल में तपस्या करता है कभी एक उंगली पर खड़े होकर निरंतर ओम नमः वासुदेवाय का जाप करता है। नन्हे बालक की घोर तपस्या से भगवान उसे दर्शन देते हैं और बालक ध्रुव भगवान को अपने भाव प्रकट करता है भगवान से कहता है मुझे माता, पिता की गोद में नहीं बैठने देती मेरी मां कहती है कि आप सृष्टि के पिता हैं इसलिए मुझे आपकी गोद में बैठना है। भगवान बालक ध्रुव की इच्छा पूरी करते हैं और उसे तारा बनाने का आशीर्वाद देते हैं जो कि सब दृश्यों से भी अधिक श्रेष्ठ होगा। उस दिन से आज तक ध्रुव तारा चमक रहा है।


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